कर का दायरा

दुनिया भर में इंटरनेट के विस्तार के साथ बहुत सारे मामलों के लिए इस पर निर्भरता जिस तेजी से बढ़ रही है, उसमें इसके नियमन का सवाल उठना ही था। खासतौर पर इसके कारोबारी पहलू पर पिछले कुछ समय से यह स्वाभाविक सवाल उठ रहे थे कि अगर कोई कंपनी इंटरनेट के जरिए अपनी गतिविधियों से भारी मुनाफा कमाती है तो वह नियम-कायदों और आर्थिक नियमन से अलग क्यों रहे!
अब इस मुद्दे पर बहस के जोर पकडऩे के बाद फ्रांस ने इस दिशा में एक ठोस कदम उठाया है। फ्रांस के सांसदों ने गूगल, अमेजन, फेसबुक और एप्पल जैसी वैश्विक स्तर पर दिग्जज मानी जाने वाली कंपनियों पर एक नए कर डिजिटल टैक्स को मंजूरी दी। अमेरिका का कहना था कि यह योजना अमेरिकी कंपनी और इन डिजिटल मंचों का इस्तेमाल करने वाले फ्रांस के नागरिकों, दोनों को प्रभावित करेगा। दरअसल, यह माना जा रहा है कि फ्रांस का यह कदम इस तथ्य के मद्देनजर सामने आया है कि डिजिटल क्षेत्र की बड़ी कंपनियां उपभोक्ताओं के आंकड़ों से भारी मुनाफा कमाती हैं। यहां तक कि फ्रांस में होने वाले लाभ पर विदेशों में कर लगाया जाता है। फ्रांस का कहना है कि यह 'अस्वीकार्य' है। फिलहाल यह टैक्स सीधी बिक्री पर नहीं लगाने के बजाय इंटरनेट प्लेटफार्म की ओर से उनके जरिए सामान बेचने पर लगाया जाएगा। इसके अलावा, अगर ये कंपनियां खास लक्षित समूहों के लिए दिखाए जाने वाले विज्ञापनों की सुविधा बेच कर राजस्व की कमाई करती हैं तो उसे भी कर के दायरे में माना जाएगा। यानी वस्तुओं का उत्पादन करने वाली कंपनी और ग्राहकों के बीच माध्यम का काम करने वाली अमेजन जैसी ऑनलाइन मार्केंटिंग करने वाली कंपनियों पर अब टैक्स लगेगा। इस कानून के लागू होने के बाद फ्रांस सरकार को इस नए नियम से सालाना तकरीबन पचास करोड़ यूरो का राजस्व मिलेगा। इससे पहले न्यूजीलैंड सरकार ने गूगल और फेसबुक जैसी ऑनलाइन बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर अलग से टैक्स लगाने की घोषणा की थी। वहां सरकार का कहना था कि हमारी कर-प्रणाली में व्यक्ति करदाता और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को एक जैसा ही देखा जाता है, जो सही नहीं है। जबकि ये कंपनियां ज्यादा कमाई करती हैं और कम टैक्स देती हैं। गौरतलब है कि दुनिया की कुछ सबसे अमीर कंपनियों को बेहद कम कर का भुगतान करने की सुविधा मिली हुई है। यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है कि कोई कंपनी अपने कारोबार से अकूत कमाई करे, लेकिन उसे उस पर टैक्स का भुगतान न करना पड़े। माना जाता है कि दुनिया भर में खासतौर पर विकसित देशों में कर-प्रणाली के मामले में सख्त नियम-कायदे हैं। लेकिन आज भी अगर यह स्थिति बनी हुई है तो निश्चित रूप इन कंपनियों को कर संबंधी नए नियमों के तहत लाने की जरूरत है। फ्रांस के इस कदम को इसी आलोक में देखा जा रहा है।